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Showing posts from March, 2016

एक और सफर

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ट्रैन की सीढ़ियों पर बैठकर सफर करना, चाँद से आगे ट्रैन निकल जाएगी ये सोचना , सिर्फ मैं इस तरह का स्वर हूँ ये सोचना , किसी शहर में ट्रैन का रुकना और धम्म से उतर जाना, पटरियों पर भागने की कोशिश करना , किसी जगह सिगनल पास की उम्मीद और  वो गाँव निहारना जहाँ ट्रैन रुकी है , उस महाराष्ट्रीयन औरत को लकड़ी ढ़ोते देखना , उस ओझा की आँखों का कोई जादू मंत्र , फिर ट्रैन में सोते दोस्तों को देखना, और सुबह 6 बजे की चाय उगते सूरज के साथ , और एक बात जिस के साथ सफर किया मैंने  सब सुहावना था..........  संदीप विहान 

जब दिमाग बच्चा था और दिल बड़ा

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मन वहाँ लौटना चाहता है , जहाँ दिमाग काम नही करता था, दिल की सुनकर इधर उधर भागते रहते थे, कुछ कहते थे हम भी नही और दूसरे भी नही समझते थे, अक्सर खतरे  के बारे में भी पता ही नही होता था की क्या होता है, धर्म, जाति, लिंग, रंग, प्रेम,सपने, पड़ोसी, अपने सब ही तो एक ही थे हमारे लिए ,                सोचता हूँ कितना अच्छा था सब कुछ जब हमें इस दुनिया की सच्चाईयाँ नही पता थी   ...........  संदीप 'विहान'