एक और सफर
ट्रैन की सीढ़ियों पर बैठकर सफर करना, चाँद से आगे ट्रैन निकल जाएगी ये सोचना , सिर्फ मैं इस तरह का स्वर हूँ ये सोचना , किसी शहर में ट्रैन का रुकना और धम्म से उतर जाना, पटरियों पर भागने की कोशिश करना , किसी जगह सिगनल पास की उम्मीद और वो गाँव निहारना जहाँ ट्रैन रुकी है , उस महाराष्ट्रीयन औरत को लकड़ी ढ़ोते देखना , उस ओझा की आँखों का कोई जादू मंत्र , फिर ट्रैन में सोते दोस्तों को देखना, और सुबह 6 बजे की चाय उगते सूरज के साथ , और एक बात जिस के साथ सफर किया मैंने सब सुहावना था.......... संदीप विहान