माफीनामा बायीं तरफ दर्ज है
पूरा दिन यूँ ही निकल जाता है। सामने कई किताबें बिखरी है। क्रांति अब मेरे लिए मूकदर्शक है। पढ़ना जैसे कमरे में लगा मकड़ी का जाला हो गया है जिस पर धुल जम चुकी है। आजकल अपने पीछे एक ही समय में दो हाथों के सहारे अपने कान और आँखे बंद करके खड़ा हूँ।क्या पगडंडी तुम्हारी बनाई हुई है ? इस पर चलुंगा तो मुझे पता है तुमने चलने के लिए पक्की गली चुनी है। अपने में लौटने का इंतजार कर रहा वो शख़्स सिर्फ एक मूर्ति है जिसे इतिहासकार किसी संग्रहालय में ढूंढ के रखेंगे। पता नही उसे वो देख पाएंगे जिनके लिए वो आशान्वित है की एक दिन उसे वो देखेंगे। कुछ दिन के लिए समय हम में बीतना चाहता था तो फिर बीत गया तो उसकी स्मृति रेखाएँ भी हाथ में नही पढ़नी चाहिए। वैसे समंदर किनारे रेत में लेट जाने का मन होता है जब ज्वार चढ़ेगा तो मैं उसमे उतर जाऊंगा। फिर अनंतकाल तक उस मछली की आँखों में झाँकूँगा जिसमे इंसानी दुनिया नहीं होगी। भूगोल का छात्र होते हुए भी कहना चाहता हूँ की मैं पृथ्वी के किनारे -किनारे चलना चाहता हूँ। चलना भी एक रवायत है समंदर से लहरे लगातार चल कर आती है और किनारे पर आकर टूट जाती है।मेरा ये सब लिखना कह द