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एक और पुरानी तरह का नया साल

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ये 31 दिसम्बर की पोस्ट है जिसे मैं आज पूरा कर रहा हूँ।उस दिन का पूरा समय साल को विदाई देने में बिता। ये कोई निश्चित नही था की मैं इस दिन को ऐसे ही बिताने वाला था।साल को विदाई देने का निश्चय एक तोरण खरीदने को लेकर हुआ। इस उम्र में मैं और मेरे जैसे कई अपना दिन बचाने को निरंतर लगे रहते है। लेकिन दिल्ली की इस भीड़ में मेरे बुद्धिजीवी टाइप दोस्त शुद्ध ऑक्सीजन है। कल जब हम  यूनिवर्सिटी के करीब वाले  बाज़ार में तोरण ढूढनें निकले तो दिमाग में कोई और पोस्ट थी जो लिखनी थी। पर  घूमते हुए एक दोस्त ने अपनी भावनात्मक बात रख दी। (देखो अब पोस्ट बदल गयी साहित्यिक होने ज़्यादा मैं यह छीछालेदर लिखने वाला हूँ।) वैसे ये भावना हम देश,समाज बदलने वाले टाइप वाले लोगों में रहती हैं।और हाँ कुछ इलीट बिहेवियर वाले लोगों में भी होती है।मल्टीलेवल पार्किंग की दुहाई देने वाली सरकार की धोखेबाज़ी के नमूने उस मॉल के सामने वाली गली उस दोस्त ने एक पंक्ति चस्पा दी। उसने कही ये इंग्लिश में थी लेकिन हिंदी में बताने की की कोशिश कर रहा हूँ। पंक्ति ये थी की यहाँ दिल्ली यूनिवर्सिटी के इस मीना बाज़ार में बहुत ज़्यादा स्ट्रीट चिल्