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Showing posts from September, 2019

अपने को लिखना है।

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अपने से गुजरते हुए अब सोच रहा हूँ लिखू। वैसे लिखना मेरे लिए असाध्य और असाधारण क्रिया रही है। लिखने का सबब होता भी था तो सोचता था कि अपने मन का लिखूं लेकिन अपने मन का न लिखने का प्रशिक्षण हमनें स्कूल में लिया और ये मुझमें कही रम गया है। खुद इस बीच सोचता हूँ कि अब बहुत पढ़ना हुआ, अब एक सिरे से लिखना भी होगा। इस दौरान इतना कुछ हो रहा है मेरा ना लिखना भी बेमानी है। लेकिन हाँ अपने लिखे को घसीटना नही है। इतने सारे संघर्ष बेजुबान मर रहे है। एक बेहतर देश जिसके सपने में सबको उतनी रोटी नसीब हो जितने भर की इच्छा मैं रखता हूं तो लिखना ही होगा। कितने लोग हमारे लिए खर्च होते जा रहे है कही बस चलाता ड्राइवर मुझे मेरी मंजिल पर सही वक्त पर पहुँचा रहा है, कही एक मजदूर रबड़ के जूते पहने हुए गर्म तालकोर का डिब्बा लिए हमारे चलने का रास्ता बना रहा है, कही किसान देर रात से खेत में पानी दे रहा है ताकि वो भूख हम तक न पहुँचें और भी पता नही कौन कौन हमें ज़िंदा रखने में अपने को खपाये हुए है। मामला अगर किसी के पास होने का और किसी के पास न होने का है तो फिर उन सबके लिए लिखना है। कई बार कई लेखों को पढ़ते हुए लगता
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नदी का कल - कल बहना नदी का पहाड़ों से उतरकर मैदान से होते हुए समंदर तक पहुँचना, नदी का अपना एक भूगोल है लेकिन नदी के इसी भूगोल को इंसान इतिहास बना देना चाहता है। नदी टेढ़े मेढ़े रास्तों से चलती है लेकर अपने भूगोल को, इसी भूगोल को इरादतन मनुष्य लगातार बदल रहा है। उसके भूगोल को बदलने के लिए बाँध बनाया। ये तो है कि उस पानी को खेतों तक पहुँचाया, ये तो है कि उससे बिजली बना घर ले आया, हम सब खुश तो होते है मनुष्य की इस विराटता को देखकर लेकिन ये उस नदी के खिलाफ साजिश थी। यह सब मनुष्य ने अपनी सभ्यता की/के उच्चता/ के विकास के लिए किया। यह सब मनुष्य ने अपने चरमसुख के लिए किया। उसके लिए सदियों से नदी सिर्फ अपने उपभोग का मामला भर है, लेकिन मनुष्य ने कभी नही सोचा उस नदी की सभ्यता के बारे में जिसे वो साथ - साथ लेकर बहती थी।  उसने सिर्फ उस नदी का उपभोग किया। ध्यान में रखने वाली बात यह है कि नदी स्त्रीलिंग है, और उसका एक भूगोल है, और मनुष्य आदतन अपने सुख के लिए इतिहास बना देगा। और सिर्फ वो जिनमें बची होगी मनुष्यता अपने बच्चों को सुनाया करेगें नदी की कहानियाँ।