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Showing posts from November, 2015

सही तो है

किसी रोज़ एक लड़की देखी , उसने कहा देखो ये मेरी शक्ल हैं  उसकी शक्ल में थी कई क्रन्तिकारी प्रतिलिपियाँ  फिर जैसे जैसे मैं देखने लगा उसे रोज़ , उसमें नजर आया उसके पिता,भाई  का चेहरा , उसकी शादी की परायी उमंगें , फिर एक दिन उसने कहा मैं अपना मकान चुनुँगी, मकान लेने मेरे पिता मेरी मदद करेंगे , अब वो  रहती हैं उस मकान में बिलकुल उसी मकान में , बिलकुल सब  लड़कियों  की तरह खुश हैं वो आज.......  संदीप विहान

धूप और मैं

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कुछ देर बालकनी में बैठकर रोज़ धूप का इंतज़ार करता हूँ, कमरे की ड्योढ़ी तक आकर वो चली जाती हैं , मैं कुछ न सोचते हुए भी बस ये करता हूँ , अगली सुबह फिर  धूप का इंतज़ार करता हूँ .......