यादों के निशाँ
करतनें है दर्जनों रिश्तों की ,
बचाए बचाए फिर रहा हूँ ,
सोचता हूँ फेंक दू लेकिन ,
सिर्फ करतनें ही नही है ना सिर्फ,
उन रिश्तों का क्या जो जिए हम ,
वो पगडंडियों सी यादों का क्या ,
जो तुमने मैंने बनायी थी साथ चलकर ,
उग ही आई उन पर घास जब तुमने चलने से मना कर दिया
मैं खुश इस बात से रहूँगा पूरी ज़िंदगी
यहां कोई पगडण्डी हुआ करती थी
यही अंत है या है ये अनन्त …
यही अंत है या है ये अनन्त …
विहान
Ugi hui ghaas se Itna shikwa kyu hai vihan,
ReplyDeleteHar pagdandi ka nishchit mukaam toh hota hi hai,
Chalo phir se uss hari ghaas par..
Purane zakhmo ko kuredne main bhi seekh hai
Zamane ke dohre usulon ka pata chal jata hai..