फाकामस्ती


            

ज़िंदगी के एक पहर से दूसरे पहर ,
शब की जागती रातो से  सोती सहर
ज़िंदगी अब तू ही बता दें बैचैन सिर्फ मैं ही क्यों हूँ। …………… 
विहान 
सहर -सुबह ,शब- रात    


Comments

  1. Itane kam shabdon mein, itni badi baat keh gaye....:)

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