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एक थे चन्द्रपाल भाई

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                                                                बहुत दिनों से ब्लॉग पर लिख नहीं रहा हूँ. दिन क्या महीने हो गए है. मेरी एम.फिल के कारण भी मैंने और काम स्थगित कर रखे थे. दोबारा लिखने से पहले मैं तरतीब में आना चाहता था. शायद उसके कुच तो करीब हूँ. बहुत दिनों से दिन का कोई ऐसा समय जब मैं घर पर अकेला होऊंगा तो लिखना अपने आप होगा ही.  अब भी पास में पास में महाश्वेता की मास्स साब पड़ी है जिसको पढकर खत्म करना है. किन्द्ल में पैसेज टू इंडिया अधूरी पड़ी है. एक और किताब पढने को कोने में मेरा इंतजार कर रही है.  शायद लोगों से  रास्ता बनाना चाहता हूँ. क्यूँ के सभी सवालों का जवाब भी उन्हीं को बारी बरि से दूंगा, जब वो कभी जवाब मांगेगे.  उपर लिखी पंक्तियाँ अभी इसलिए लिख गया कि अगर मेरी जिंदगी में दूसरी तरफ़ कुछ हो रहा होगा तो क्या ही हो रहा होगा. मुझे नहीं पता. फ़ोन पर घर वालों से कम ही बात करता हूँ. भाई का उस दिन फोन आया तो  बात करते करते उसने चन्द्रपाल भाई का जिक्र किया. तभी मेरे दिमाग में लगभग 15 साल पहले की स्मृति की तस्वीरें जिनमे चन्द्रपाल भाई भी साथ है  दौड़ने लगी. भाई के स