नीला फोल्डर
हर असाइनमेंट के लिए कॉलेज में पूरी तयारी के साथ उससे सजा कर जमा करना होता था। इतना सब होते होते ज़िंदगी के दोजख में वो लड़का किसी पीएचडी में पहुंच गया था। ज़िंदगी की इस ज़द्दोज़हद में वो क्या समेट रहा था और खोल रहा था उससे ही नही पता था। वो प्रेमिका की त्रासदी से गुजरकर उन सपनों की हसीं वादियों में एक आह ! के साथ आसमान को कितनी बार दोपहर में भी तक लेता था ,तब ,जब सूरज भी इसकी इज़ाज़त से नही देता था। इन सब बातो को अपनी माँ से उसने कभी नही बताया फिर भी माँ ने सब जान लिया। एक रोज़ जब वो रोज़ की तरह यूनिवर्सिटी के लिए निकल ही रहा था तो उसकी माँ ने खाँसते हुए बोला बेटा आजकल बहुत परेशान रहते हो,ज़िंदगी में सब ठीक हो जायेगा अपना ध्यान रखो और सेहत मत बिगाड़ों अपनी इस पढ़ाई के चलते। बेटा कुछ नही बोला तो माँ ने चारपाई पर बैठे बेटे के सर पर हाथ फेरते हुए फिर कहा जो दुरुस्त हैं वही तंदुरुस्त हैं। इस बीच माँ की बात सुनकर अपने को सँभालते हुए वो