ख़ालिस शहर........
शुरुआत कहा से हो मैं नही जानता।शहर मेरे लिए लगातार अजीब होता जा रहा है। इसमें मैं हवा के अक्स को ढूंढने की कोशिश में ही लगा रहता हूँ। शहर आपको एक अजीब तरह की अव्यवस्था की तरफ धकेलते है। जो लोग इस शहर को अपना लेते है वो इसको सच्चाई मान लेते है।सच्चाई शहर के व्यवस्थित मान लेने की है। जैसे ही व्यवस्थित कहा तो लगातार शहर कंक्रीट और लोहे में तब्दील दिखाई देने लगता है।चारों तरफ़ नजर दौड़ाने पर एक भीड़ सामने नजर आती है वो भीड़ है इंसानों की, मकानों की, दुकानों की और बंद गलियों की।लगातार शहर अपने में कैद हो रहे है और ये हमारे लिए डेवलपमेंट है। हम लगातार अपने अगल-बगल में झाँक रहे होते है और सोचते है मेरा डेवलपमेंट इस से कम कैसे है। इस क्षीण भाव से शहर हमें भीड़ में धकेलता है। शहर में बचे रहने की सम्भावना के लिए हमनें पार्क,मार्केट,मॉल और भी कई कोने ढूंढ लिए है। अपने को पीठ पर लादे हुए इधर से उधर घूमना शहर में रवायत है। मिल जाने की सम्भावना के साथ ही तो हम लगातार इन शहरों में अपने से जूझ रहे है। आप कभी फ्लाईओवर पर खड़े होइए और देखिये शहर को फिर सोचिए क्यूँ दिल फ्लाईअवे हो जाना चाहता है।