अरुणा शानबाग
अरुणा शानबाग के लिए जिन्होंने पुरुष लोलुपता को 42 वर्ष सहा.………
42 साल में कुछ नही बदला …
एक बेड पर पड़ी तुमने जिया अपनी मृत्यु को ,
तुम माँ ,बहन ,बेटी ,प्रेमिका नही हो सकी ,
कितना मुश्किल है स्त्री होना, जो तुम हुई ,
पुरुष की अतृप्त इच्छाए कभी संतृप्त नही होगी,
जो रिश्ते में है किसी अर्थ में वे भी भोग सिर्फ पुरुष इच्छाओं को ,
किसी को पत्नी का फ़र्ज़ निभाना है,
तो किसी को बेटी होने का फ़र्ज़ ,
किसी को निभाना है माँ होना ,
सारे फ़र्ज़ो को को भोग रही हो ,
अपने लिए ज़ी ही नही कभी स्त्री …
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