एक थे चन्द्रपाल भाई

                                                                बहुत दिनों से ब्लॉग पर लिख नहीं रहा हूँ. दिन क्या महीने हो गए है.
मेरी एम.फिल के कारण भी मैंने और काम स्थगित कर रखे थे. दोबारा लिखने से पहले मैं तरतीब में आना चाहता था. शायद उसके कुच तो करीब हूँ. बहुत दिनों से दिन का कोई ऐसा समय जब मैं घर पर अकेला होऊंगा तो लिखना अपने आप होगा ही.  अब भी पास में पास में महाश्वेता की मास्स साब पड़ी है जिसको पढकर खत्म करना है. किन्द्ल में पैसेज टू इंडिया अधूरी पड़ी है. एक और किताब पढने को कोने में मेरा इंतजार कर रही है.  शायद लोगों से  रास्ता बनाना चाहता हूँ. क्यूँ के सभी सवालों का जवाब भी उन्हीं को बारी बरि से दूंगा, जब वो कभी जवाब मांगेगे.

 उपर लिखी पंक्तियाँ अभी इसलिए लिख गया कि अगर मेरी जिंदगी में दूसरी तरफ़ कुछ हो रहा होगा तो क्या ही हो रहा होगा. मुझे नहीं पता.
फ़ोन पर घर वालों से कम ही बात करता हूँ. भाई का उस दिन फोन आया तो  बात करते करते उसने चन्द्रपाल भाई का जिक्र किया. तभी मेरे दिमाग में लगभग 15 साल पहले की स्मृति की तस्वीरें जिनमे चन्द्रपाल भाई भी साथ है  दौड़ने लगी. भाई के सभी गाँव के दोस्तों से आज भी बात होती है. उनसे बचपन में रोजाना मिलना होता था. भाई जब भी उनके साथ हमारे चौबारे में बैठते थे तो मुझे भगा देते थे. शायद वो उनके निजी स्पेस की मांग होती थी. मैं भी चला जाता था.

चन्द्रपाल भाई से शायद एक बार ही मिला हूँगा. चन्द्रपाल भाई बी,एड से लेकर से शायद एम.फिल तक साथ पढ़े. भाई जहाँ पढ़ता था वो संस्थान मेरे लिए आकर्षण बना रहा. सोचता था यहाँ कभी पढूँगा. सी.आई.ई में आया और पढ़ भी लिया. शायद भाई, चन्द्रपाल और सज्जाद भाई की तस्वीरों को देखकर ही एक दिन यहाँ आने की सोची मैंने. सज्जाद भाई  से सी.आई. ई में कम ही बोलता हूँ और कम ही बैठता हूँ. शायद बचपन से ही भाई के दोस्तों के साथ गैप रखने की आदत है मेरी.

उस दिन भाई ने चन्द्रपाल भाई के बारे में जो बताया उसके बाद कई दिनों से जिन्दगी में रुका सा महसूस कर रहा हूँ. चन्द्रपाल भाई की दो हज़ार दस में अकस्मात मृत्यु हो गयी. भाई ने बताया की दो हज़ार नौ में उनसे आखिरी बार मिलना हुआ था. उसके बाद भाई भी अपनी जिंदगी में व्यस्त रहे. कई बार दिल्ली आना हुआ लेकिन चन्द्रपाल भाई से मिलने की कोशिश नहीं की. भाई बता भी रहे थे चन्द्रपाल का फ़ोन नम्बर इतने साल से बार बार ममिलाते थे तो कभी मिला नही. इन दिनों इग्नू में किस काम के सिलसिले में है तो चन्द्रपाल भाई का घर उसी रस्ते में है तो उनसे मिलने गये. वही उन्हें उनकी आकस्मिक मृत्यु का इतने सालों बाद पता चला. चन्द्रपाल भाई और भाई की कितनी ही तस्वीरें है. यूँ  दोस्तों का बिना कहे चले जाना कुछ कम सा कर देता है जिंदगी में.
 भाई ने जब यह बात बताई तो मेरी स्मृतियों के सी.आई.ई की तस्वीर से एक शख्स दोबारा लौट आया. हमारे यूनिवर्सिटी में पढनें में घर वालों के बाद दोस्तों ने ही इस दुनिया को साझा जिया है.

किसी ने बात ही बात में कहा कि संस्थान के प्रति आपकी भी तो जिम्मेदारी है. मैंने उसे उसी समय मना किया कि मेरी इस संस्थान के लिए कोई जिम्मेदारी अभी नहीं है. यह संस्थान मेरे भाई से होता हुआ ही मेरे में आया है. 

(भाई की फेसबुक दीवार से यह तस्वीर ली है. इसमें चन्द्रपाल भाई नहीं है .लेकिन इन तस्वीरों से गुजरते हुए उस समय में चन्द्रपाल भाई को याद कर रहा हूँ. आप हमेशा याद रहेगे चन्द्रपाल भाई)  

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