ब्रह्ममूर्त के ख्याल

सुबह के 4:01 तक कमरे में इधर से उधर भटक चूका हूँ कई बार ,
अपने सपने की बैचनी से उठ खड़ा हुआ हूँ मैं ,
अलाव भी नही है जो सेंक लूँ पाव अपने
शहर ये मौके नही देता ,
कई पंक्तियाँ लिखकर कई बार काट चूका हूँ
कौनसे शब्द हैं जो पिरोने हैं मुझे ,

दिमाग के किस सफ़्हे में ख़्याल  दर्ज़ कर लिया मैंने
पूछने पर महीम रेशों की उलझन का पता दूंगा ,
चाँदनी चौक में गुरूद्वारे के सामने की भीड़ जैसे
ख्याल कई दिनों से दिल में ठूसें हुए है
फिर बैचनी होती है ना लिखने पर,
और हाँ एक दिन की वो साँझा यादों को लिखने का जिम्मा
मैंने  उसका मान लिया ,
खैर कमरे में जब से चीज़े तरतीब से रखी हैं
मेरी हसरतों की उधेड़बुन बुन रही है नया सा कुछ,
गिनतियों सी बढ़ रही हैं ज़िंदगी किस और
मैं थमना चाहता हूँ किसी पहाड़ की तलहटी के गाँव में ,
बिलकुल योल के घरों से किसी दुछत्ती घर में .......


संदीप 'विहान
'


Comments

Popular posts from this blog

उसका ख्याल

सवाल पूछना है