झीनी सी धुप

आज कल धुप देखने को कहा मिलती है
चार मंजिला से होती हुई कोई झीनी सी धुप घर में आई 
मै कमरे में औन्धे मुहं लेटा था बिना ख्याल के
वो कमरे में चुपचाप से आई और कमर पर उकडू बैठ गई
कमर में जो जो इतने दिन से दर्द घर बनाये बैठा था
उसने भी उफ्फ तक ना की उसके बैठने के अंदाज़ पर
फिर भी जब एक आह निकल ही गयी उफक के मुहं से
तो उसने कहा बूढ़े हो चले हो जवान दिनों में
मै क्या कहता उसके इस सवाल पर
मै चुप ही रहा ....और उसके स्पर्श को महसूस करता रहा देर तक
जब उसके होने का एहसास दिल से जाने लगा तो
मै उठा कमर के दर्द में तपाक से
पर ये क्या वो झीनी सी धुप जा चुकी थी मेरे कमरे से
वो झीनी सी धुप और मेरा इंतजार...................
संदीप विहान


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