होना
होने की व्याख्या को जब करने की कोशिश कर रहा हूँ तो यह मुझे रोमांचित कर देता है. यह उन दिनों का होना भी है जब भरी गर्मी में अमलतास के फूल पिला रंग बिखेरे हुए होते है. यह उन दिनों का भी होना है जब दूब पर ओस की बूँद शिद्दत से लटकी हुई है. यह उन दिनों का होना भी है जब किसी सर्दी में जमी किसी नदी में पानी बह रहा होता है. यह उन दिनों का होना भी है जब मैं पहाड़ के उपर पहुँच कर हवा को अपने अंदर भर जाने की हद तक महसूस करता हूँ.
वैसे दिल्ली में इस समय होना किसी गैस चैम्बर में होने से कम नहीं है. जिसमें मार्किट ने दिल्ली वालों का बता दिया है कि चिंता की कोई बात नहीं है हम आप को बचा ले जाएगे. लेकिन फिर होने को महसूस किस तरह हो ही जाता है. यह होना मन का होना है. जिसे मैं सूरते-बेहाल अपनी लूना के साथ महसूस करता हूँ. विश्वविद्यालय से निकलते हुए बंदरों के झुंड के पास उनको चिड़ा कर निकलते हुए. सिविल लाइंस की तरफ जाते हुए उस रास्ते को महसूस करता हुआ कही एक प्याली चाय के साथ ढेर सारी बातों में मैं होता हूँ.
थोडा आगे बढ़ते हुए फ्लाईओवर पर चढ़ते हुए दूसरे आसमान में छलांग लगाते हुए मैं होता हूँ. लालकिले की दिवार के पास गुजरते हुए लाल पत्थर मैं होता हूँ. फिर साइड में फ्लाईओवर से गुजरते हुए अक्षरधाम से चुपके से निकलते हुए मैं होता हूँ.
फिर इमारतों की भीड़ के बीच लगे हरे बेंच पर बैठे हुए उन चूहों को देखते हुए भी तो मैं होता हूँ. फिर मच्छरों द्वारा अपने पैरों के लिटमस टेस्ट को देने के लिए मैं होता हूँ.
कभी मैं जंतर होता हूँ तो कभी मैं मंतर होता हूँ. मैं ही तो सीपी के किसी भीड़ भरे इलाकें में किसी चौतरे पर बैठा होता हूँ.
इस महानगर में इस समय होना ही मेरी ख़ुशी है जिस पर शहर की कालिख भी बेअसर है. इस होने में कितनी चीज़े छूट भी जाती है .कभी लालकिला नहीं पहुँच पाता तो कई बार किसी दूसरी जगह. वैसे मेरे होने में ही मैं होता हूँ. फिर जोर से अपने होने को हाथ दबाकर महसूस करता हूँ.
सुनो साथी तुम होना नदी नदी, पर्वत पर्वत. कोई नील आकाश ढूंढेगे. जहाँ होने को तकते रहे.
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