शहर में क्या होंगे हम तुम

चलों न साथ साथ चलते है इन सड़कों पर 
इस शहर में एक दूसरे को ढूंढेगे

हम दोनों हो जाएंगे बस स्टैण्ड का इंतजार
किसी खाली बस में घर तक पहुंचेंगे 

हम उस पानी वाले का पानी हो जाएंगे 
जो ठण्डा रहता है घंटों और प्यास किसी की बुझाता है 


हम किसी रिक्शा खींचने वाले का पसीना बनकर बहेंगे 
जो शाम को ढ़ाबे पर रोटी के स्वाद बदलता है 


हम यूनिवर्सिटी की वो बेस्वाद चाय हो जाएंगे

जिस को दिल्लगी के चलते पीते है 

तुम कमला नगर हो शायद और मैं मुखर्जी नगर
तुमसे दिल नहीं भरता और मैं वहा ठहरा हूँ कई सालों से 

       देखो  शहर रोज बदल रहा है.........  


संदीप 'विहान'




Comments

  1. धन्यवाद आरती ।
    कम से कम शब्द कही पहुँच रहे है।

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