सवाल पूछना है

कई दिनों से  एक सवाल सामने रहता है। लेकिन इसको पूछा क्यों जाए? और न पूछना भी तो सवाल के साथ जीना दुश्वार कर देता है।अगर जवाब के घर का पता  होता तो अपने सवाल को चीठ्ठी के जरिये जरूर पंहुचा देता। लेकिन ऐसे थोड़े होता हैं जवाब की एक दुनिया होगी। फिर मैं क्यों उस जवाब को अपने सवाल के इल्म की दुहाई दू। ये भी तो है इस सवाल के साथ बहुत कुछ कहना था फिर सवाल और फिर कहना दोनों नहीं हो पाता। सवाल के साथ मैं लाइब्रेरी में घंटो बिताता भी हूँ तो भी सूरत-ऐ -हाल वही रहता। जबाब परेशान है इसलिए तंग करना भी ठीक नही पर कोई बात चले तो जा पहुचे गी  ग़ालिब की हवेली तक। वैसे भी आजकल कोई बैठकर शांति से बात कहा करता है। ये सवाल शायद मेरा कृष्णा सोबती की ऐ लड़की से है जो अभी पढ़नी बाकी है। यु भी सवाल के बहाने लिखना हो गया। वरना आजकल बस सोचना ही हो रहा है लिखना नहीं हो पा रहा।



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