नीला फोल्डर

                                                                                                                                        
   हर असाइनमेंट के लिए कॉलेज में पूरी तयारी के साथ उससे सजा कर जमा करना होता था। इतना सब होते होते ज़िंदगी के दोजख में वो लड़का किसी पीएचडी में पहुंच गया था। ज़िंदगी की इस ज़द्दोज़हद में वो क्या समेट रहा था और खोल रहा था उससे ही नही पता था। वो प्रेमिका की त्रासदी से गुजरकर उन सपनों की हसीं वादियों में एक आह ! के साथ आसमान को कितनी बार दोपहर में भी तक लेता था ,तब ,जब सूरज भी इसकी इज़ाज़त से नही देता था। इन सब बातो को अपनी माँ से उसने कभी नही बताया फिर भी माँ ने सब जान लिया। एक रोज़ जब वो रोज़ की तरह यूनिवर्सिटी के लिए निकल ही रहा था तो उसकी माँ ने खाँसते हुए बोला बेटा आजकल बहुत परेशान रहते हो,ज़िंदगी में सब ठीक हो जायेगा अपना ध्यान रखो और सेहत मत बिगाड़ों अपनी इस पढ़ाई के चलते। बेटा कुछ नही बोला तो माँ  ने चारपाई पर बैठे बेटे के सर पर हाथ फेरते हुए फिर कहा जो दुरुस्त हैं वही तंदुरुस्त हैं। इस बीच माँ की बात सुनकर अपने को सँभालते हुए वो उठा उसने बेग उठाया और वो यूनिवर्सिटी में अपने सपने बीनने फिर निकल पड़ा।
इस बीच दिन में माँ ने सोचा की कल ही डॉक्टर की दी हुई दवाई खत्म हो गयी हैं आज फिर से लानी हैं। लेकिन इस ख्याल के बीच बेटे का बिखरा कमरा जहन में था। माँ कमरे में पहुंची हमेशा की तरह सब समेटकर ,माँ ने करीने से सब चीज़ों को अपनी जगह रख दिया। हाँ कुछ बिखरे पन्नें जो सारे के सारे माँ की नजर में जरुरी थे उसने रख दिए। माँ अनपढ़ थी तो उसके लिए उसके बेटे के कमरे का हर बिखरा लिखा हुआ पन्ना जरुरी था।बेटे ने जब ये बताया हैं की माँ उसे पढ़ाई में एक जगह कविता लिखने का इनाम मिला हैं तो तब से तो पक्का ही माँ के लिए हर लिखावट से भरा पन्ना जरुरी हो जाता था। कमरे का काम खत्म होते ही माँ ने अपनी दवाई की सारी पर्चिया समेटी और निकलने को हुई तो डॉक्टर की बात याद आ गयी की सभी पर्चियाँ संभाल के रखना इस बार खोयी तो दवाई नही दुँगा।
    माँ के लिए अपनी दवाई की पर्चियों से ज़्यादा जरुरी बेटे के बिखरे पन्ने थे। माँ पर्चियों के लिए कोई झोला या पन्नी देखने बेटे के कमरे में गयी वह उससे कुछ नही मिला तो उसकी नजर स्टडी टेबल पर पड़े एक फोल्डर पर गयी। माँ ने उसे तलाशना शुरू किया उसमे कुछ रंगीन से सख्त पन्ने रखे हुए थे माँ ने वो निकाले और अलमारी में रख दिए। इसके बाद माँ सरकारी अस्पताल के लिए निकल पड़ी प्राइवेट अस्पताल में वो क्यों नही जाना चाहती थी ये कोई भी बता सकता हैं। डॉक्टर के पास पहुंचीं तो उसे लम्बी लाइन मिली शायद घर सँभालते - सँभालते देर हो गयी थी। इस बीच लंबी लाइन के चलते वो जमीं पर ही बैठ गयी। बारी आने पर डॉक्टर ने नब्ज पकड़ते हुए और कुछ बात करके बीमारी का हाल समझने की कोशिश करते हुए कहा की अम्मा आप आराम नही करती शायद !ऐसे तो बीमारी बढ़ जाएगी। वो मंद मंद मुस्कराई और बोली आगे से ध्यान रखूँगी। आप ठीक सी दवाइयाँ लिख दीजिये जो यही दवाखाने में मिल जाये बाहर से न खरीदनी पड़े।उसने उसके बाद दवाइयाँ ली और घर वापिस आ गयी। घर आने पर थोड़े आराम के बाद वो उठ गयी। शाम के खाने के बारे सोच रही थी की बेटे के लिए क्या बनाए।
यूनिवर्सिटी की दुनिया में उधर वो लड़का चाय की दुकान पर दोस्तों से बातों ही बातों में देश बदलने की बात कर रहा था। वो बस हर चीज़ से नाराज़ था। लेकिन इन सब के बीच दिमाग में नौकरी की तंगमारी छुपी हुई थी। लाइब्रेरी के बाद चंद रुपये बचाता हुआ वो घर के लिए निकल पड़ा।
जाते ही घर पर मुँह -हाथ धोया और छत से हमेशा की तरह उस नीम के पेड़ को देखने लगा। उसे भी नही पता वो उस पेड़ को क्यूँ देखता हैं। भूख उसे जोरों से लगी थी नीचे आकर रसोई में देखा खाना तैयार हैं। वो बरामदे में जा कर बैठ गया। माँ ने उसे खाना परोस दिया। साथ में दूध भी दिया लेकिन माँ बचपन से ही ,उसकी आँखों के सामने ले आती थी तो उसको दूध से एलर्जी सी थी। उसने कहा माँ मैं नही पीऊगा। माँ ने कहा रख ले बेटा खाने के बाद पी लेना। 
    लड़का कमरे में गया। दिनभर की थकान से हारा हुआ वो कमरे की छतों में अपने सपनों के नक़्शे बना रहा था। 
तभी उसे अपना वो फोल्डर याद आया  जिसे वो रोज़ देखता था। जो खुशी के साथ गम भी देता था लेकिन फिर भी देखता था। उस फोल्डर में उसका बीता हुआ सपना बंद होगा तभी रोज़ देखता था। लेकिन ये क्या उसे आज टेबल पर वो फोल्डर नही दिख रहा था। उसको एक अजब सी बैचैनी ने घेर लिया। उसे कही भी वो फोल्डर नही मिला।इस बैचनी में वो अपने करीने से रखे हुए सामान को देखकर  समझ गया की माँ ने कमरे की सफाई की हैं। 
  वो गुस्से में कमरे से बाहर निकला और माँ - माँ  चिल्लाता हुआ निकला। माँ रसोई में पानी का ग्लास लिए  और हाथ में दिन में लायी  दवाई में से एक ख़ुराक हाथ में लिए हुई थी। बेटे की आवाज़ सुनकर माँ ने  सब कुछ रसोई में रखा और बाहर  आ गयी। उसने बेटे से पूछा क्या हुआ।बेटे ने गुस्से में कहा माँ मेरा कमरा साफ़ किया था। माँ ने हाँ में जवाब दिया। बेटे ने कहा आप ने मेरा नीले  रंग का फोल्डर कहा रख दिया। माँ को कुछ समझ नही आया। माँ ने इतना ही जवाब दिया सारा सामान वही कमरे में रख दिया था। बेटे ने फिर जोर देकर कहा की नही मेरा फोल्डर आपने ही कही रखा होगा। फिर उसने माँ को समझने की कोशिश की। फोल्डर के सामान   के बारे में बताया। तभी माँ के ध्यान में आया की वो तो उसने अपनी दवाई की पर्ची रखने के लिए ले लिया था। बेटे ने सामान के बारे पूछा की वो कहा हैं ? माँ उसे कमरे तक लेकर गयी और अलमारी में से वो सामान निकालकर बेटे को दिया। बेटा उस  रंग बिरंगे सख्त से कागजो को देखकर खुश हो गया। माँ को बेटे की ख़ुशी देखकर  जान में जान आयी। माँ कमरे से बाहर निकली तुरंत दूसरे कमरे में गयी और उस फोल्डर से दवाई की पर्चिया निकालकर  बेटे को दी और कहा ले बेटा  कही सामान खो जाये। मैं पर्ची किसी और पन्नी में रख लूँगी। बेटे ने फोल्डर रख लिया। माँ के बाहर जाने पर बीटा बिस्तर पर लेट गया और उन ग्रीटिंग्स को देखने लगा जो उसकी प्रेमिका ने उसे कभी दिए थे और माँ जिन्हे रंगीन कागज़ समझ रही थी। उन ग्रीटिंग्स को देखकर वो सपनों की दुनिया में चला गया। उधर माँ दूसरे कमरे यही सोच रही थी चलों उससे बेटे का सामान खोया नही। आज के बाद कोई सामान कमरे से नही लुंगी। इस तरह माँ दिनभर की थकान में माँ सो गयी। 
  रात को बेटे को प्यास लगी तो वो रसोई में गया। नींद में मटके के सहारे रखे ग्लास  जिसमे पानी भरा था उसने वो उठाया और दूसरा पानी लेकर पिया और जा कर कमरे में सो गया। 
   और रसोई में उस खाली ग्लास के सहारे माँ की गोलियों की खुराक रखी हुई थी।  वो सुबह देखेगी तो उससे याद आएगी। 
  

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