नीला फोल्डर
हर असाइनमेंट के लिए कॉलेज में पूरी तयारी के साथ उससे सजा कर जमा करना होता था। इतना सब होते होते ज़िंदगी के दोजख में वो लड़का किसी पीएचडी में पहुंच गया था। ज़िंदगी की इस ज़द्दोज़हद में वो क्या समेट रहा था और खोल रहा था उससे ही नही पता था। वो प्रेमिका की त्रासदी से गुजरकर उन सपनों की हसीं वादियों में एक आह ! के साथ आसमान को कितनी बार दोपहर में भी तक लेता था ,तब ,जब सूरज भी इसकी इज़ाज़त से नही देता था। इन सब बातो को अपनी माँ से उसने कभी नही बताया फिर भी माँ ने सब जान लिया। एक रोज़ जब वो रोज़ की त...